सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों को गति देने की प्रक्रिया शुरू की, वायु प्रदूषण मे भी आएगी कमी
इसे वायु प्रदूषण की समस्या के हल के तौर पर देखा जा रहा है। लेकिन क्या वास्तव में यह वायु प्रदूषण की समस्या का श्रेष्ठ समाधान है? भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बिजली उत्पादक देश है और पिछले वर्ष यहां 3.73 लाख मेगावॉट बिजली का उत्पादन किया गया। लेकिन इसका स्याह पहलू यह है कि देश में उत्पादित बिजली का 54 फीसद हिस्सा कोयले से चलने वाले प्लांटों में तैयार होता है। इन प्लांटों से बाइ प्रोडक्ट के रूप में कार्बन डाईऑक्साइड, सल्फर डाईऑक्साइड व नाइट्रोजन जैसी जहरीली गैसों का उत्सर्जन होता है।
नीति आयोग के आंकड़ों के मुताबिक बिजली उत्पादन के लिए कोयले से चलने वाले प्लांटों पर हमारी निर्भरता वर्तमान के 47 प्रतिशत के मुकाबले वर्ष 2030 तक 51 प्रतिशत तक बढ़ने की संभावना है। इसके लिए कोयले की खपत में वर्तमान की तुलना में 200 से 300 प्रतिशत तक की वृद्धि होगी। इससे प्रतिवर्ष उत्सर्जति होने वाले कार्बन डाईऑक्साइड की मात्र 159 करोड़ टन से बढ़कर 432 करोड़ टन होने की आशंका है। पार्टकिुलेट मैटर, सल्फर डाईऑक्साइड और नाइट्रोजन आदि का उत्सर्जन भी वर्तमान की तुलना में दोगुना होने की आशंका है। इससे वायु प्रदूषण जनित रोगों के कारण प्रतिवर्ष होने वाली मौतों के भी दोगुने से तीन गुने तक होने की आशंका जताई जा रही है।