उत्तराखंड

सत्ता के गलियारे से: राजनीति में मुददे ऐसे ही फिसलते हैं नेताजी

देहरादून। कुछ दिन पहले तक कांग्रेस फूल कर कुप्पा होती नजर आ रही थी, वजह भी ठीक। उत्तराखंड में जल्द विधानसभा चुनाव हैं, तो तीन मुद्दों के बूते कांग्रेस को चुनावी वैतरणी पार करने का भरोसा था। इनमें तीन कृषि कानून और गन्ना मूल्य भुगतान के अलावा चारधाम देवस्थानम बोर्ड शामिल थे। माहौल भांप भाजपा खेमे में कुछ चिंता दिख रही थी। फिर प्रधानमंत्री मोदी ने अचानक तीनों कृषि कानून वापस लेने का एलान कर डाला। कांग्रेस को मायूसी तो हुई, मगर चिंता नहीं। मोदी के बाद मुख्यमंत्री धामी बैटिंग करने लगे। उत्तर प्रदेश से पांच रुपये अधिक गन्ने की कीमत कर दी। अगला कदम देवस्थानम बोर्ड को भंग करने का उठा दिया। घोषणा कर दी कि सरकार इससे संबंधित अधिनियम वापस लेने जा रही है। इसी हफ्ते विधानसभा सत्र है, इसमें हो जाएगा। अब कांग्रेस को सूझ नहीं रहा, ऐन मौके पर पूरी चुनावी रणनीति की हवा जो निकल गई।

इन दिनों तो किशोर ही चल रहे हैं

एक ने सवाल किया, कांग्रेस की राजनीति में क्या चल रहा है। उधर से जवाब मिला, आजकल तो केवल किशोर चल रहे हैं। दरअसल, बात यह है कि किशोर की छवि सौम्य नेता की है, वह बहुत आक्रामक नहीं, लेकिन अब चुनाव से पहले ऐसे तेवर कि छा गए। पूर्व मंत्री व पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय चर्चा बटोर रहे हैं अपनी ही पार्टी नेताओं को कठघरे में खड़ा करने के लिए। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को इन्हें घेरने के लिए चिर प्रतिद्वंद्वी शूरवीर सिंह सजवाण को आगे करना पड़ा। किशोर की नाराजगी की चर्चा इतनी बढ़ी कि इंटरनेट मीडिया में उनके भाजपा में शामिल होने की बात चल निकली। यह तक कहा गया कि प्रधानमंत्री मोदी के कार्यक्रम में यह पालाबदल होगा, जो हुआ नहीं। अब नहीं मालूम कि इन चर्चाओं में कितना दम है, लेकिन इससे कांग्रेस के कई नेताओं का दम जरूर निकला जा रहा है

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