तिवारी के रिकार्ड की बराबरी नहीं कर पाए त्रिवेंद्र, चार साल पूरे करने की दहलीज पर पहुंचते ही पद से पड़ा हटना

देहरादून। नौ नवंबर 2000 को अस्तित्व में आए उत्तराखंड के राजनीतिक इतिहास में सरकार में नेतृत्व परिवर्तन कोई नई बात नहीं है। पंडित नारायण दत्त तिवारी को छोड़ दिया जाए तो अंतरिम से लेकर अब तक की निर्वाचित सरकारों में कोई भी मुख्यमंत्री पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया। हालांकि, इस मर्तबा प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई त्रिवेंद्र सरकार के पांच साल पूरा करने की उम्मीद जताई जा रही थी, मगर मुख्यमंत्री के रूप में त्रिवेंद्र सिंह रावत भी तिवारी की बराबरी नहीं कर पाए। चार साल पूरे करने की दहलीज पर पहुंचते ही उन्हें पद से हटना पड़ा। अलबत्ता, यह पहली बार है, जब चौथी निर्वाचित सरकार में नेतृत्व परिवर्तन की सुगबुगाहट के बीच मुख्यमंत्री को चुनौती देने वाला कोई चेहरा नजर नहीं आया। पूर्व में अंतरिम से लेकर पिछली सरकार तक के कार्यकाल में मुख्यमंत्रियों को चुनौती देने वाले चेहरे सामने रहे हैं।
उत्तराखंड के सियासी सफर पर नजर दौड़ाएं तो राजनीतिक अस्थिरता का दंश यह राज्य शुरुआत से ही झेलता आ रहा है। राज्य गठन के बाद जब अंतरिम विधानसभा अस्तित्व में आई तो तब 30 सदस्य थे और भाजपा बहुमत में थी। नित्यानंद स्वामी राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने तो उन्हें चुनौती देने वाले चेहरे के रूप में वरिष्ठ नेता भगत सिंह कोश्यारी सामने थे। पार्टी में उपजे अंतरविरोधों का ही नतीजा रहा कि सालभर बाद ही स्वामी को हटाकर कोश्यारी को मुख्यमंत्री बनाया गया।