सत्ता के गलियारे में : हरदा के गणेश और 36 का हुआ उलटफेर
देहरादून। कांग्रेस हाईकमान ने हरीश रावत को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने से परहेज किया, तो हरदा ने बाईपास पकड़ा और गणेश गोदियाल को संगठन का जिम्मा दिला खुद चुनाव अभियान की कमान थाम ली। सत्ता की दौड़ में कांग्रेस का श्रीगणेश कर हरदा ने पहला मोर्चा तो फतह कर लिया, मगर प्रीतम ठहरे पुराने चावल। पहले मोर्चे पर मात खा गए, मगर जैसे ही जुबां फिसली, गणेश को घेरने में देर नहीं लगाई। गोदियाल ने बयान दिया कि 36 टिकट फाइनल हो चुके, बाकी जल्द तय किए जाएंगे। प्रीतम ने गोदियाल को लपका और तड़ से मीडिया के समक्ष साफ किया कि बगैर नेता विधायक दल प्रत्याशी तय हो ही नहीं सकते। अब गोदियाल बैकफुट पर हैं, मगर हर कोई जानना चाहता है कि उन्हें 36 टिकट फाइनल करने का आइडिया दिया किसने। 36 विधानसभा में बहुमत का जादुई आंकड़ा है, शायद इसी फेर में सब गुड़ गोबर हो गया।
शुरू हुआ आया राम, गया राम का सिलसिला
वैसे, आया राम, गया राम काफी पुराना मसला है, हर चुनाव से पहले इसे दोहराया जाता है। भला उत्तराखंड सियासत की इस रवायत से कैसे अछूता रहे। चार-पांच महीने बाद विधानसभा चुनाव हैं, तो पालाबदल का भी आगाज हो चुका है। भाजपा दो विपक्षी विधायकों को पाले में ला चुकी है। इनमें से एक राजकुमार तो परिवार के ही मेंबर हैं, पिछली बार रूठ कर हाथ थाम लिया था। पटरी नहीं बैठी तो अब फिर कमल की याद आई। कोई पूछे कि साढ़े चार साल तो हाथ को हाथोंहाथ लिए रहे, विदाई की बेला के आखिरी पांच महीने में कैसे अपनी गलती सुधारने की सुध आई। अचरज तब होता है जब नेताजी पालाबदल के मौके पर भरे हृदय से उद्गार व्यक्त करते हैं कि दूसरा घर तलाश कर गलती कर बैठे थे, लोकतंत्र के असली खेवनहार तो वहीं हैं, जहां से निकलने के बाद अब घर वापसी कर रहे हैं।