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केंद्र सरकार ने नई रक्षा खरीद प्रक्रिया को दी मंजूरी, अब किराए पर ले सकेंगे लड़ाकू हेलिकॉप्टर और पनडूब्बियाँ

नई दिल्ली। सैनिक साजो-समान और हथियारों के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लक्ष्य पर केंद्रित नई रक्षा खरीद प्रक्रिया की घोषणा कर दी गई है। नई खरीद प्रक्रिया में बड़ा बदलाव करते हुए हथियारों और सैन्य साजो-समान को किराए (लीज) पर लेने का विकल्प खोल दिया गया है। इस बदलाव के बाद अब लड़ाकू हेलिकॉप्टर, मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट, नौसैनिक जहाज से लेकर युद्धक साजो-समान को देश-विदेश कहीं से भी अनुबंध पर लेने का रास्ता खुल गया है। बड़े रक्षा सौदों में ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट की बाध्यता को भी अब लगभग नगण्य कर दिया गया है।

मेक इन इंडिया के तहत घरेलू रक्षा कंपनियों को ताकत देने की व्यवस्था

रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में रक्षा खरीद परिषद (डीएसी) की सोमवार को हुई बैठक में डीएपी-2020 पर मुहर लगाई गई। राजनाथ सिंह ने कहा कि नई रक्षा खरीद प्रक्रिया में मेक इन इंडिया के तहत घरेलू रक्षा कंपनियों को ताकत देने की पूरी व्यवस्था की गई है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के विजन के अनुरूप है। इसका लक्ष्य भारत को रक्षा क्षेत्र में एक वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग हब बनना है।

राजनाथ के अनुसार, रक्षा क्षेत्र की हाल में ही घोषित प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की नई नीति के मद्देनजर डीएपी-2020 में घरेलू कंपनियों को प्रोत्साहित करने का प्रावधान रखा गया है। मेक-1 और मेक-2 के अंर्तगत डिजाइन और विकास से जुड़ी कंपनियों को भारतीय नियंत्रित कंपनियों के लिए ही आरक्षित रखा गया है। रक्षा खरीद की नई प्रक्रिया एक अक्टूबर से लागू हो जाएगी। सीमित संसाधनों की चुनौती के बीच देश की रक्षा और सैन्य साजो-समान की भारी जरूरतों को देखते हुए अनुबंध के विकल्प को खरीद प्रक्रिया के अहम हिस्से के रूप में शामिल किया गया है। राष्ट्रीय सुरक्षा के हितों से समझौता किए बिना पूंजीगत खर्च में कमी लाने के मकसद से हथियारों और सैन्य साजो-समान को लीज पर लिया जा सकेगा। अभी केवल रूस से नौसैनिक पनडुब्बी लीज पर लिए जाने के अपवाद के अलावा यह विकल्प नहीं था।

पहली बार डीएपी में लीज का विकल्प, ये होगा कम खर्चीला

रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, नये डीएपी के बाद युद्धक हेलिकॉप्टर और सैन्य उपकरण-हथियार, मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट, नौसैनिक जहाज आदि किराए पर लिए जा सकेंगे। तात्कालिक या आपात जरूरतों के हिसाब से इनके लिए लीज सौदे का विकल्प होगा, जबकि घरेलू छोटी कंपनियों के हित का ख्याल रखते हुए 100 करोड़ तक की रक्षा जरूरतों की आपूर्ति एमएसएमइ सेक्टर के लिए पूरी तरह आरक्षित रखा गया है। रक्षा मंत्रालय में महानिदेशक रक्षा खरीद अपूर्व चंद्रा ने इस बारे में कहा कि पहली बार डीएपी में लीज का विकल्प इसलिए रखा गया है कि दूरगामी लिहाज से यह कम खर्चीला होगा। इससे कॉन्ट्रैक्ट प्रबंधन का एक नया रास्ता खुलेगा। साथ ही मेनटेनेंस की चुनौती और खर्च में भी कमी आएगी, क्योंकि किराए पर देने वाली कंपनी या देश ही अपने साजो-समान, उपकरणों व हथियारों के रखरखाव का जिम्मा उठाएगा।

ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट की बाध्यता खत्म

वहीं, नये डीएपी में ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट की बाध्यता इसीलिए खत्म की गई, क्योंकि रक्षा मंत्रालय इसके केवल प्रोडक्ट खरीद तक सीमित रहने को समाप्त करना चाहता है। नई नीति के हिसाब से अब दो देशों की सरकारों या सरकारों के जरिये हुए रक्षा सौदे में ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट नहीं होगा। इसी तरह किसी एक कंपनी के साथ रक्षा खरीद के मामले में भी यह प्रावधान लागू नहीं होगा।रक्षा खरीद प्रकिया में इज ऑफ डूइंग बिजनेस के लक्ष्य के तहत 500 करोड़ तक की खरीद को एक ही स्टेज में मंजूरी दी जाएगी। इसी तरह सेनाओं के लिए सूचना प्रौद्योगिकी और सॉफ्टवेयर तकनीक आदि हासिल करने की मौजूदा लंबी प्रक्रिया को सरल बनाया गया है। अपूर्व चंद्रा ने कहा कि कई मामलों में ऐसी खरीद की मंजूरी में चार साल तक लग जाते हैं और तब तक यह टेक्नोलॉजी आउटडेटेड हो जाती है। रक्षा खरीद प्रक्रिया पहली बार 2002 में बनी थी, जिसमें समय-समय पर बदलाव होते रहे हैं।

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