उत्तराखंड

कुंभ मेलों में सबसे निराला हरिद्वार कुंभ, गांधी जी हुए थे भावविभोर; इन विदेशी यात्रियों ने भी किया महिमा का बखान

देहरादून। Haridwar Kumbh Mela 2021 वैसे तो कुंभ मेले प्रयाग, उज्जैन व नासिक में भी आयोजित होते हैं, लेकिन साढ़े तीन माह चलने वाले हरिद्वार कुंभ की बात ही निराली है। यहां कुंभ के विराट रूप को देखकर गांधीजी तक भावविभोर हो गए थे। वे 1915 के कुंभ के दौरान पांच अप्रैल को बा (कस्तूरबा) के साथ हरिद्वार आए थे। यही नहीं, भारत आने वाले विदेशी यात्रियों ह्वेन त्सांग (634 ईस्वी), शफरुरुद्दीन (1398 ईस्वी), थॉमस कायरट (1608 ईस्वी), थॉमस डेनियल व विलियम डेनियल (1789 ईस्वी), थॉमस हार्डविक व डॉ. हंटर (1796 ईस्वी), विन्सेंट रेपर (1808 ईस्वी), कैप्टन थॉमस स्किनर (1830 ईस्वी) आदि ने भी अपने संस्मरणों में हरिद्वार कुंभ की महिमा का बखान किया है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि कुंभ अनेकता में एकता के दर्शन कराता है। देश के विभिन्न प्रांतों से जब विविध भाषा-भाषी आध्यात्मिक उन्नयन के लिए कुंभनगर में इकट्ठा होते हैं तो राष्ट्रीय एकता के तार जुड़ते चले जाते हैं। भले ही नासिक, उज्जैन, प्रयाग व हरिद्वार भारत की भौगोलिक एकता का परिचय न दे पाते हों, लेकिन इन स्थानों पर कुंभ मेलों के दौरान एकत्र होने वाले श्रद्धालु अपने साथ अपनी-अपनी भूमि, तीर्थ, सामाजिक व्यवस्था व सांस्कृतिक चेतना के माध्यम से विराट समानता के दर्शन अवश्य करा देते हैं।

आदि शंकराचार्य और रामानंदाचार्य ने संगठन और सामाजिक रूपांतरण के क्षेत्र में मध्यकाल में जो विराट कार्यक्रम बनाया था, उनके अनुयायियों ने कुंभपर्व पर अपनी संपूर्ण शक्ति के साथ उसे व्यावहारिक रूप प्रदान किया। शाही स्नान की शोभायात्राओं में उन्होंने भौतिक और आध्यात्मिक वैभव का प्रदर्शन कर आक्रांता शासकों से भयभीत सनातनी समाज को नैतिक एवं शारीरिक सुरक्षा प्रदान की। 1796 ईस्वी में पटियाला के राजा साहिब सिंह ने दस हजार घुड़सवारों के साथ शस्त्रबल पर सिख साधुओं को कुंभ स्नान का अधिकार दिलाया। दूसरी ओर पेशवाओं ने नागा संन्यासियों को उनके शस्त्र एवं शास्त्र पर समान अधिकार के कारण भरपूर सम्मान दिया।

Related Articles

Back to top button