उत्तराखंड

चुनावी साल में उत्तराखंड को केंद्र सरकार से ग्रीन बोनस की दरकार

देहरादून I चुनावी साल में उत्तराखंड सरकार को केंद्रीय बजट से ग्रीन बोनस की दरकार है। सरकारी चाहती है कि पर्यावरणीय सेवाओं के बदले केंद्र सरकार उसे कम से कम सात हजार करोड़ रुपये सालाना धनराशि दे। इस धनराशि का इस्तेमाल वह राज्य के विकास कार्यों में करना चाहती है, ताकि पर्यावरणीय और वन संरक्षण अधिनियम की बंदिशों की वजह पहाड़ और मैदान के बीच विकास की विषमता की खाई को पाटा जा सके। कुछ दिन पहले शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक ने केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीता रमण से भी केंद्रीय बजट में ग्रीन बोनस देने का अनुरोध किया था।

ग्रीन बोनस की मांग के पीछे तार्किक आधार
राज्य सरकार की ग्रीन बोनस की मांग के पीछे एक तार्किक आधार है। उत्तराखंड उन हिमालयी राज्यों में है, जिसका बहुत बड़ा भूभाग वनीय है। उत्तराखंड राज्य में करीब 71 प्रतिशत वन क्षेत्र है। इसका करीब 46 प्रतिशत वनाच्छादित क्षेत्र है। राज्य के पर्वतीय जिलों में 90 से 95 प्रतिशत भूभाग वनों से घिरा है। साफ है कि पहाड़ में विकास की रफ्तार पर पर्यावरणीय एवं वन संरक्षण से जुड़ी बंदिशों की लगाम है। विकास की सीमित गति के चलते पहाड़ खाली हो रहे हैं। पलायन की गति ने प्रदेश की हर सरकार को चिंता में डाला है।

वन और पर्यावरण से हमारा सांस्कृतिक रिश्ता 
वनों से उत्तराखंड सांस्कृतिक रिश्ता है। देश का संभवत: अकेला राज्य है जहां ग्राम पंचायतों से अधिक वन पंचायतें हैं। इनकी संख्या करीब 10 हजार है। वनों की सुरक्षा, उनका संरक्षण और प्रबंधन ये वन पंचायतें करती हैं।

पहाड़ को चुकानी पड़ रही है बड़ी कीमत
वनों से उत्तराखंड को उतना लाभ नहीं मिलता, जितना मैदानी जिलों को वन विहीन भूमि से मिलता है। जानकारों के अनुसार, दो से तीन प्रतिशत वन क्षेत्र वाले हरिद्वार और देहरादून का जीडीपी में 45 से 50 प्रतिशत का योगदान है। लेकिन पर्वतीय क्षेत्रों में वन क्षेत्र से जीडीपी में बेहद मामूली योगदान है। पहाड़ को विकास की बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है।

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