वाडिया में वेश्यावृत्ति से जुड़ी सभी महिलाओने अंबाजी मंदिर में देह-व्यापार बंद करने का लिया संकल्प
वाडिया में वेश्यावृत्ति से जुड़ी सभी महिलाएं अब अगरबत्ती बनाकर आत्मनिर्भर बनेंगी।
अंबाजी
वेश्यावृत्ति के लिए बदनाम गुजरात में थराद तालुका के वाडिया गांव की पहचान अब बदलने वाली है। यहां वर्षों से देह व्यापार में जुड़ी सभी महिलाओं ने समाज की मुख्यधारा में जुड़ने का फैसला किया है। प्रशासन व समाज सेवी संगठनों की मदद से यह बदलाव संभवा हो पाया है। गांव की सभी महिलाओं ने फैसला किया है कि अब वे अगरबत्ती बनाकर अपना जीवन-यापन करेंगी।
मां अंबाजी में लिया संकल्प
वाडिया गांव से बड़ी संख्या में महिलाएं रविवार को अंबाजी पहुंची। अंबाजी मंदिर देवस्थान ट्रस्ट ने उनका स्वागत कर तिलक और खेस पहनाकर अभिनंदन किया। वाडिया गांव की महिलाएं मां अंबा के सामने गईं और आशीर्वाद लिया। वे माताजी से देह व्यापार का त्याग कर सकारात्मक एवं गौरवपूर्ण जीवन जीने का संकल्प लेकर चाचर चौक पहुंचीं और अगरबत्ती बनाकर परिवार का भरण-पोषण करने का निर्णय लिया।
बनासकांठा जिला कलेक्टर, सामाजिक नेताओं, गैर सरकारी संगठनों और सखी मंडल के सहयोग से यह बदलाव संभव हो पाया।
बनासकांठा जिला कलेक्टर, सामाजिक नेताओं, गैर सरकारी संगठनों और सखी मंडल के सहयोग से यह बदलाव संभव हो पाया।
बनासकांठा कलेक्टर के समझाने के बाद लिया फैसला
स्वाभिमान की दिशा में उठे इन कदमों को बनासकांठा जिला प्रशासन ‘टीम बनासकांठा’ का पूरा सहयोग मिला है। केंद्र एवं राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन से वाडिया गांव की हकीकत में आमूल-चूल परिवर्तन शुरू हो गया है। जिला प्रशासन के सहयोग से बहनों ने नई शुरुआत की है।
बनासकांठा जिला कलेक्टर, सामाजिक नेताओं, गैर सरकारी संगठनों और सखी मंडल ने महिलाओं को स्थाई रूप से देह व्यापार बंद कर नए संकल्प के साथ नया जीवन शुरू करने के लिए समझाया था, जिनके प्रयासों से यह सफल हुआ है।
अंबाजी मंदिर देवस्थान ट्रस्ट ने उनका स्वागत कर तिलक और खेस पहनाकर अभिनंदन किया।
अंबाजी मंदिर देवस्थान ट्रस्ट ने उनका स्वागत कर तिलक और खेस पहनाकर अभिनंदन किया।
जिस्मफरोशी रियासतकाल से परंपरा बनी
वाडिया बनासकांठा के थराद तालुका में स्थित गांव है। गांव में सरानिया समुदाय के लोगों की बड़ी जनसंख्या है। कहा जाता है कि रियासतकाल में इस गांव में सरानिया समुदाय की महिलाएं और लड़कियां युद्ध के दौरान सैनिकों का मनोरंजन करती थीं। नाच-गाने के अलावा उन्हें शारीरिक सुख भी देती थीं। वर्तमान में भी गांव की स्थिति ऐसी ही है।
गांव की बहन-बेटी को उनके भाई और पिता ही इस धंधे में धकेलते हैं।
गांव की बहन-बेटी को उनके भाई और पिता ही इस धंधे में धकेलते हैं।
कई युवतियां वेश्यावृत्ति के धंधे में शामिल होना पसंद नहीं करतीं, लेकिन उन्हें उनकी इच्छा के विरुद्ध ऐसा करने के लिए मजबूर किया जाता है। इस गांव में जिस्मफरोशी परंपरा बन गई है। गांव की बहन-बेटी को उनके भाई और पिता ही इस धंधे में धकेलते हैं।
यहां बेटी के जवान होते ही पिता और भाई उसे वेश्वयावृत्ति में भेज देते हैं। हालांकि, पिछले कुछ समय में सामाजिक संस्थाओं के प्रयासों के काफी महिलाएं इस दलदल से बाहर आ चुकी हैं।