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खुश खबरी: भारत में रूसी कोरोना वैक्सीन स्पुतनिक-V के अंतिम चरण का ट्रायल शुरू

नई दिल्ली I भारत में रूसी वैक्सीन की सफलता की राह देख रहे लोगों के लिए अच्छी खबर है। भारत में रूसी वैक्सीन स्पुतनिक-5 के दूसरे और तीसरे चरण के ट्रायल की शुरुआत हो गई है। डॉ रेड्डीज और रूसी प्रत्यक्ष निवेश कोष (आरडीआईएफ) ने मंगलवार को कहा कि उन्होंने भारत में स्पुतनिक-5 कोरोना टीके के लिए दूसरे और तीसरे चरण के नैदानिक ​​परीक्षणों की शुरुआत की है। कसौली स्थित केंद्रीय औषधि प्रयोगशाला से आवश्यक मंजूरी मिलने के बाद परीक्षण शुरू किया गया है। 

हैदराबाद स्थित दवा निर्माता और आरडीआईएफ ने एक संयुक्त बयान में कहा कि यह एक बहुकेंद्रीय और यादृच्छिक नियंत्रित अध्ययन होगा, जिसमें सुरक्षा और प्रतिरक्षात्मक अध्ययन शामिल होंगे। जेएसएस मेडिकल रिसर्च द्वारा क्लीनिकल रिसर्च पार्टनर के रूप में यह परीक्षण किए जा रहे हैं। इसके अलावा डॉ रेड्डीज ने जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (बिराक), जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) के साथ सलाहकार सहायता के लिए और वैक्सीन के लिए बिराक के नैदानिक ​​परीक्षण केंद्रों का उपयोग करने के लिए साझेदारी की है। 

हाल ही में, आरडीआईएफ ने नैदानिक ​​परीक्षण डेटा के दूसरे अंतरिम विश्लेषण की घोषणा की थी, जिसमें कहा गया था कि पहली खुराक के बाद 28वें दिन टीके ने 91.4 प्रतिशत प्रभावकारिता दिखाई, जबकि पहली खुराक के 42 दिन बाद 95 प्रतिशत से अधिक की प्रभावकारिता देखी गई। वर्तमान में, 40,000 स्वयंसेवक स्पुतनिक वी नैदानिक ​​परीक्षणों के चरण 3 में भाग ले रहे हैं।

यूरोपीय मेडिकल एजेंसी की दो टीकों की सुरक्षा पर नजर

वहीं, ईयू की दवा नियामक यूरोपियन मेडिसिंस एजेंसी ने कहा है कि वह 29 दिसंबर को एक बैठक बुलाएगी, ताकि यह तय किया जा सके कि फाइजर और बायोएनटेक द्वारा विकसित कोविड-19 टीके को मंजूरी देने के लिए क्या इसकी सुरक्षा और प्रभावकारिता के बारे में पर्याप्त डाटा मौजूद है।

इसके साथ ही एजेंसी ने मंगलवार को कहा कि वह जल्द से जल्द 12 जनवरी तक तय कर सकता है कि अमेरिका की दवा कंपनी मॉडर्ना द्वारा विकसित कोविड-19 के प्रायोगिक टीके को मंजूरी दी जाए या नहीं। ईयू दवा नियामक ने एक बयान में कहा कि उसने पहले से ही मॉडर्ना द्वारा सौंपे गए प्रयोगशाला के आंकड़े के आधार पर टीके की रोलिंग समीक्षा शुरू कर दी है और अब इस बात का आकलन किया जाएगा कि यह टीका रोग प्रतिरोधक क्षमता की दृष्टि से कितने बेहतर ढंग से कारगर साबित होता है और क्या यह पूरे यूरोप में व्यापक रूप से इस्तेमाल के लिए सुरक्षित है।

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