उत्तराखंड

नागा संन्यासी बनने के लिए 200 महिलाओं का हुआ मुंडन संस्कार, जानिए कैसे बनती हैं महिला नागा संन्यासी

हरिद्वार। श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़ा की नागा संन्यासी (अवधूतानी) बनने के लिए 200 महिलाओं ने सांसारिक मोह-माया, पारिवारिक बंधन और अपने-अपने शिखा सूत्र का त्याग कर दिया। इन सभी ने बुधवार को हरिद्वार के बिड़ला घाट पर शुरू हुई इस दो-दिवसीय प्रक्रिया के पहले दिन मुंडन संस्कार में हिस्सा लिया। साथ ही अन्य संस्कार भी पूरे किए। गुरुवार को अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर इन सभी को अवधूतानी के रूप में दीक्षित करेंगे।

अखाड़े की साध्वी श्रीमहंत साधना गिरि ने बताया कि महिला नागा संन्यासी यानी अवधूतानी बनने को सबसे पहले संन्यासी बनना पड़ता है। इसके लिए वह पंच संस्कार धर्म का पालन करती हैं। इसके तहत सभी को अपने-अपने पांच गुरु-कंठी गुरु, भगौती गुरु, भर्मा गुरु, भगवती गुरु व शाखा गुरु (सतगुरु) बनाने पड़ते हैं। इनके अधीन ये सभी संन्यास के कठोर नियमों का पालन करती हैं। इसके बाद जहां-जहां कुंभ होते हैं, वहां इससे संबंधित संस्कार में भाग लेती हैं। श्रीमहंत साधना गिरि ने बताया कि अवधूतानी बनने की प्रक्रिया के तहत सभी साध्वी पूरी रात धर्मध्वजा के नीचे पंचाक्षरी मंत्र ‘ॐ नम: शिवाय’ का जाप करती हैं। सभी को यह कड़ी चेतावनी होती है कि इस प्रक्रिया में किसी किस्म का कोई व्यवधान न होने पाए। यही वजह है कि जब प्रक्रिया चल रही होती है, तब वहां किसी का भी प्रवेश करने की अनुमति नहीं होती।

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