इन्हें भी वात्सल्य की दरकार, कोई भी अनाथ बच्चा मदद से न रह पाए वंचित

देहरदून। देश में कोरोना अब तक लाखों व्यक्तियों का जीवन निगल चुका है। प्रदेश में भी यह महामारी बेहद घातक साबित हुई है। यहां छह हजार से ज्यादा लोग जान गंवा चुके हैं। यह आंकड़ा मरीजों की कुल संख्या के दो फीसद के आसपास है। कई बच्चों से तो इस बीमारी ने अभिभावक ही छीन लिए। ऐसे अनाथ बच्चों के लिए मुख्यमंत्री वात्सल्य योजना सरकार का सराहनीय कदम है। बस, अब इस योजना को गंभीरता के साथ अमलीजामा पहनाया जाए। जिससे कोई भी अनाथ बच्चा मदद से वंचित न रह पाए। कोरोना से इतर देखें तो राज्य में और भी ऐसे बच्चे हैं, जिनके सिर से माता-पिता दोनों का साया उठ चुका है। किसी ने हादसे तो किसी ने अन्य वजह से अभिभावकों को खोया है। सरकार को ऐसे बच्चों की भी सुध लेनी चाहिए। उनके जीवन में भी वात्सल्य का प्रकाश भरकर भविष्य को उज्ज्वल बनाने की कोशिश होनी चाहिए।
‘भगवान’ का यह कैसा रूप
पहाड़ के अस्पतालों में संसाधनों का अभाव किसी से छिपा नहीं है। मगर, हर बार मरीजों की परेशानी के लिए यह अभाव ही कसूरवार हो, ऐसा भी नहीं है। कई दफा व्यवस्था भी जिम्मेदार होती है। चंद रोज पहले ही पहाड़ में चिकित्सकों की हठधर्मिता के कारण एक गर्भवती को रात सड़क पर गुजारनी पड़ी। घटना जिला अस्पताल बौराड़ी की है। यहां गर्भवती को यह कहकर भर्ती करने से ही इन्कार कर दिया गया कि शरीर में रक्त की मात्रा कम है। अगले दिन पीड़ित परिवार ने जनप्रतिनिधियों के साथ आंदोलन की राह पकड़ी तो बिना आपरेशन ही प्रसव हो गया। आखिर धरती के भगवान का यह कौन सा रूप है। माना पहाड़ में स्वास्थ्य सुविधाएं नासाज हैं, मगर ईमानदारी से इलाज की कोशिश तो करनी ही चाहिए। सीख लेनी चाहिए उन चिकित्सकों से, जो कोरोना काल में जान की परवाह किए बगैर संक्रमितों का जीवन बचाने में जुटे हैं।