उत्तराखंड

मैं भी गैरसैंण का भूमिधर बन गया हूं : मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत

देहरादून। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अब गैरसैंण के भूमिधर बन गए हैं। उन्होंने ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण के नजदीक सारकोट गांव के देवीधार तोक में स्थानीय निवासी जमन सिंह से छह नाली भूमि खरीदी है। इस पहल के माध्यम से मुख्यमंत्री ने रिवर्स पलायन को लेकर बड़ा संदेश दिया है। उन्होंने कहा कि रिवर्स पलायन से ही पहाड़ की तस्वीर व तकदीर संवरेगी। इस दिशा में सबसे पहले जनप्रतिनिधियों को ही पहल करनी होगी।

यह किसी से छिपा नहीं है कि उत्तराखंड के गांव पलायन का दंश झेल रहे हैं। ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण भी इससे अछूती नहीं है। पलायन आयोग की चमोली जिले की हालिया सर्वे रिपोर्ट बताती है कि गैरसैंण ब्लाक से भी बड़े पैमाने पर पलायन हुआ है। यही वजह है कि सरकार ने जड़ों से दूर हुए पहाड़वासियों को फिर से वापस बुलाने पर फोकस किया है।

रिवर्स पलायन की इस कड़ी में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने दूधातोली पर्वत श्रृंखला की गोद में बसे गैरसैंण के सारकोट गांव से नाता जोड़ा है। मुख्यमंत्री ने सोशल मीडिया के माध्यम से जानकारी साझा की कि ‘मैं भी गैरसैंण का विधिवत भूमिधर बन गया हूं’। मुख्यमंत्री का मूल गांव पौड़ी जिले के अंतर्गत खैरासैंण है, लेकिन स्थायी रूप से वह देहरादून के निवासी हैं।

मुख्यमंत्री ने कहा कि गैरसैंण जनभावनाओं का प्रतीक है। गैरसैंण प्रत्येक उत्तराखंडी के दिल में बसता है और लोकतंत्र में जनभावनाएं सर्वोपरि होती हैं। उन्होंने कहा कि गैरसैंण के रास्ते ही समूचे उत्तराखंड का विकास किया जा सकता है। युवाओं को स्वरोजगार की राह पर ले जाने को सरकार कृतसंकल्प है और ऐसा करने से पहाड़ बसेगा। उत्तराखंड को उसके प्राकृतिक स्वरूप की तरफ ले जाने और राज्य के चहुंमुखी विकास के लिए सरकार ने कार्य किया है। सरकार पुरानी धारणाएं तोडऩे की कोशिश कर रही है और स्वरोजगार को विकास का माध्यम बना रही है।

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