सत्ता के गलियारे से: लक्षण दिखाएं, दरवाजे तो खुले हैं

देहरादून। कांग्रेस के दिग्गज हरीश रावत को लंबे इंतजार के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल हुई, मगर 2016 में 10 विधायकों ने रंग में भंग कर डाला। तब किसी तरह सत्ता तो बच गई, मगर इसका असर यह हुआ कि विधानसभा चुनाव में पार्टी चारों खाने चित। हरदा इस सियासी जख्म को भुला नहीं पाए और उन्होंने कभी इसे छिपाने की कोशिश भी नहीं की, लेकिन अब उनके सुर कुछ बदले-बदले महसूस हो रहे हैं। उनका एक बयान आया, अगर कोई घर वापसी करना चाहता है तो उसके लिए घर के दरवाजे हमेशा खुले हैं, बशर्ते लक्षण तो दिखाए कि वह कांग्रेसी हैं। हरदा के हृदय परिवर्तन का राज जानना चाहते हैं, तो यह है मुख्यमंत्री की कुर्सी। सूबे में बस सात-आठ महीने बाद विधानसभा चुनाव हैं और हरदा कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री पद के सबसे बड़े दावेदार। अब भला कौन दो-चार सीटों के अंतर से स्वर्णिम मौका चूकना चाहेगा।
तो चौथी विधानसभा में छह उपचुनाव
उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद चौथी विधानसभा वजूद में है। पहली तीन विधानसभाओं में भी उपचुनाव की नौबत आई, ज्यादातर गैर विधायक के मुख्यमंत्री बनने के कारण। पहली निर्वाचित विधानसभा में नारायण दत्त तिवारी, दूसरी में भुवन चंद्र खंडूड़ी और तीसरी में विजय बहुगुणा व हरीश रावत जब मुख्यमंत्री बने, तब वे विधायक नहीं थे। इसके अलावा विधायकों के निधन के कारण भी उपचुनाव हुए, लेकिन इस चौथी विधानसभा में तो उपचुनाव का आंकड़ा छह तक पहुंचने के आसार दिख रहे हैं। चौथी विधानसभा के लिए निर्वाचित भाजपा के विधायक मगनलाल शाह, प्रकाश पंत और सुरेंद्र सिंह जीना के निधन के कारण उपचुनाव हुए। आखिरी साल में भाजपा विधायक गोपाल रावत और हाल ही में नेता प्रतिपक्ष व कांग्रेस की दिग्गज डा इंदिरा हृदयेश का भी साथ छूट गया। यानी दो उपचुनाव तय, इसके अलावा मुख्यमंत्री तीरथ का उपचुनाव भी जोड़ दिया जाए तो पहुंच जाएगी संख्या छह।